यह कहानी एक कवि की है जो अपनी नौकरी और अपने गाँव के बीच फंसा हुआ है। कविजी, जो अब चालीस की उम्र पार कर चुके हैं, दो बेटे और एक बेटी के पिता हैं। उनकी पत्नी सुंदर, समझदार और तेज़ है, लेकिन एक छोटी सी बात पर दोनों के बीच अनबन रहती है।
कविजी पिछले पंद्रह सालों से भारत सरकार के एक प्रतिष्ठान में काम कर रहे हैं, लेकिन इस नौकरी ने उन्हें कभी संतुष्टि नहीं दी। वे अक्सर नौकरी छोड़ने का विचार करते हैं, लेकिन आर्थिक मजबूरियों के कारण ऐसा नहीं कर पाते। उनकी आत्मा हमेशा अपने गाँव की ओर खिंचती है, जहाँ की यादें उन्हें जीवित रखती हैं।
गाँव की यादें उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। वहाँ के बाग, तालाब, कोयल की कूक, खेतों में काम करती मजदूरिनें, और मेले की रौनक...